“भारत परिवार” का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन शिक्षा, स्वास्थ्य का बढ़ता व्यवसायीकरण एवं रोजगार की समस्या” विषय पर चर्चा।

अलवर : भारत परिवार का द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन निर्वाण वन फाउंडेशन में प्रारंभ हुआ। सम्मेलन के प्रारम्भ में भारत परिवार के समन्वयक विरेंद्र सिंह क्रांतिकारी ने सांगठनिक परिचय दिया। प्रथम सत्र में “जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण एवं खेती किसानी पर मंडराते खतरे” विषय पर व्याख्यान हुए। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए निर्वाण बोधिसत्व ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोग एक मंच आएं तथा जल, जंगल, जमीन को बचाने एवं तमाम समस्याओं के उन्मूलन करने का का रोडमैप बनाए। छत्तीसगढ़ से आए गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा कि भारत में पूंजीपति और चुनी हुई सरकारों के गठबंधन ने मिलकर आदिवासियों की जमीन छीनकर उन्हें बर्बाद कर दिया है, अब अगला निशाना किसान है। इसके बाद अन्य कमजोर वर्गों का भी नम्बर आएगा। इसलिए सबको संगठित होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है। गंगा मुक्ति आंदोलन बिहार के अनिल प्रकाश ने कहा की पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि वायुमंडल का तापमान बढ़ रहा है, जिस दिन यह 55 प्रतिशत हो जाएगा दुनियां में कोई नहीं बचेगा। पूंजीपतियों की भूख ने नदी, जल जंगल, जमीन पर कब्जा करके मानवता को संकट में डाल दिया है।पूंजीपतियों के इस साम्राज्यवादी जाल को नौजवानों को समझना चाहिए। बिहार से आए लेखक सामाजिक कार्यकर्ता प्रो योगेन्द्र ने कहा कि जिस विकास की हम बात कर रहे हैं वो विकास कॉरपोरेट सेक्टर पूंजीपतियों का विकास है, उसमे गरीब वंचित आदिवासी की कोई कीमत नहीं है। भारत के गरीब किसान, खेतिहर, मजदूर , स्त्रियों को उनके मूलभूत अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। यह हमारी बुनियादी चिन्ता होनी चाहिए। इस सत्र का संचालन सरिता भारत ने किया। इस सत्र के दौरान डॉ. भरत मीणा की पुस्तक “सांसी जाति, पुलिस बल एवं मानव अधिकार ” का विमोचन किया गया। दूसरे सत्र में “राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय युद्ध मानव जीवन को खतरा” विषय पर अशोक भारत, डॉ ए.के अरुण, हरियाणा से आए दलीप कामरेड, प्रसून, एडवोकेट हरिशंकर गोयल, भोलाराम, सर्वेश जैन ने विचार व्यक्त करते हुए युद्ध और हिंसा को मानवता के लिए खतरा बताते हुए अंतर्राष्ट्रीय शांति हेतु बुद्ध और गांधी के मार्ग पर चलने का आहवान किया।इस सत्र का संचालन उमेश तुरी एवं नीरू यादव ने किया।

तृतीय सत्र “आजादी के 78 वर्ष और हाशिए का समुदाय एवं ट्रांसजेंडर” विषय पर कला महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भरत मीणा ने घुमंतु समुदाय के मानव अधिकारों का मुद्दा उठाते हुए भारतीय समाज और लोकतंत्र में भागीदार बनाने का आह्वाहन किया। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के स्कॉलर अशोक बंजारा ने समुदायों के बीच बढ़ते सामाजिक अलगाव और पिछड़े समुदायों का लोकतांत्रिक व्यवस्था से बहिष्कृत हो जाने के खतरों पर विचार रखे। जबकि डॉ महेश गोठवाल ने समाज के हाशिए के समूहों विशेषकर दलित आदिवासी और महिलाओं के उत्थान पर काम करने की जरूरत बताई। दूसरे दिन आयोजित चतुर्थ सत्र “शिक्षा, स्वास्थ्य का बढ़ता व्यवसायीकरण एवं रोजगार की समस्या” विषय पर मुख्य वक्ता प्रो हेमेंद्र चंडालिया ने WTO के डंकल प्रस्तावों के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य का जिम्मा पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चले जाने तथा लोक कल्याणकरी राज्य की संकल्पना खत्म हो जाने पर चिन्ता जाहिर करते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य को आमजन के लिए सुलभ बनाने हेतु सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि संविधानिक मूल्य की स्थापना, समाजवाद धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र की पुनर्स्थापना हो सके। इस सत्र का संचालन संजीव आनंद एवं रामतरुण ने किया। सम्मेलन के आयोजक वीरेंद्र क्रान्तिकारी ने बताया कि इस सम्मेलन में 16 राज्यों से दो सौ से ज्यादा कार्यकर्ता उपस्थित हुए हैं।

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